इस पगडंडी का रास्ता कूड़े के उपलों को नकारने में नहीं, बल्कि उसकी जगह मन-भावन कलई करके स्वच्छ भारत सिद्ध कर देने की मुस्कराती घोषणा के साथ होता है। चुंधियाई हुई आंखों से देखते हैं कि कल जो ढूह था, किसी चोर गली के रास्ते सिंहासन में तब्दील हो गया। उस पर वे जम गए हैं, आवारा सपनों के उस मसीहा की तरह, जिसने पगडंडी बदलते हुए उनके सपने तो किसी भूल-भुलैया में खो दिए, और अपने दावों की विजयश्री के साथ अपनी शोभा को हमारी शोभायात्रा बनाने पर तुला हुआ है। लेकिन कतार में खड़े आखिरी आदमी की भी कोई शोभायात्रा होती है? उनका जिम्मा तो यही है कि वे फुटपाथ पर उपेक्षित खड़े इस शोभायात्रा का जयघोष करें और उसके बाद और भी अकेले होकर किसी नई शोभायात्रा का इंतजार करें, जहां के मसीहा उन्हें एक और नए सपनों की चकाचौंध भेंट कर देंगे। वह चकाचौंध, जो इतनी जल्दी मुरझा जाती है कि फुटपाथों का अंधेरा और बढ़ जाता है।